कब रात ढली, कब दिन ऊगा, पता ही नहीं चला, सोते जागते
कब जवानी बीती, कब बुढ़ापा आया, एहसास ही नहीं हुआ, गिरते समबलथे
Culture, Kavitha, Marriage, Shayri
Culture, Kavitha, Marriage, Shayri
कब रात ढली, कब दिन ऊगा, पता ही नहीं चला, सोते जागते
कब जवानी बीती, कब बुढ़ापा आया, एहसास ही नहीं हुआ, गिरते समबलथे