जला तो है हर कोई यहाँ,
दर्द का दरिया किसे न छुआ
मेरे पहचान में है कोई
जो रहा इन सबसे, अलग और जुदा
रोज पुकारूँ न जाने कितने नामों से
वो दयालु मुझ से फिर भी रहे, अंजान और बेखबर
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जला तो है हर कोई यहाँ,
दर्द का दरिया किसे न छुआ
मेरे पहचान में है कोई
जो रहा इन सबसे, अलग और जुदा
रोज पुकारूँ न जाने कितने नामों से
वो दयालु मुझ से फिर भी रहे, अंजान और बेखबर