शाम का वक़्त, है तो सुहाना
लेके बैठा ये रोज, इंतजार का नजराना
होंठों पे है सजी, यादों का तराना
चुपके से क्यों न तुम, जल्दी आ जाना
हमको यूँ ,और न ऐसे तरसना
आहों में जीने की, आदत में न डालना
शाम का वक़्त, है तो सुहाना
लेके बैठा ये रोज, इंतजार का नजराना
सदियों का आस लिए, आया ये पागल दीवाना
तुमसे आंख मिलाने से भी, डरता है ये बेगाना
दिन के फरेबों से, अपना करार छुपा के रखना
उलझे हुए उलझनों में, और न उलझ जाना
शाम का वक़्त, है तो सुहाना
लेके बैठा ये रोज, इंतजार का नजराना
दुनिया के मसलों से, अपनी दुनिया आबाद न करना
गर, बे मौसम कारे बादल आ टपके, तो मायूस न होना
बेजान सा मुखड़ा, कभी न अपने दर पर लेके आना
आईना भी अजनबी सोचकर, कहीं रह न जाए अनजाना
शाम का वक़्त, है तो सुहाना
लेके बैठा ये रोज, इंतजार का नजराना
न रहा सुकून, तो दूर ही रहना
दूर रहकर ही, ये रिश्ता निभाना
हो सके, तो कल अपनी सेहत बनाये रखना
जब मौका मिले, तो ज़रूर आ गले लगना
शाम का वक़्त, है तो सुहाना
लेके बैठा ये रोज, इंतजार का नजराना