मौसम के भी है दीवार
ईंट-पत्थरों के ये बने न सही
जमीन से इनका कोई नाता न सही
किसी की जान इनमें कैद न सही

मौसम के भी है दीवार
हवा का बना हुआ
हवा से बाँधा हुआ
हवा का तस्वीर लिया हुआ

मौसम के भी है दीवार
खुशबू और बादल
रौशनी और सरगोशी
सख्त मगर, ये पर्दा सभी ने पार किया

मौसम के भी है दीवार
पट्टा का न ख़याल किया
सर्द की न परवाह किया
बेजान मगर, पत्ता भी उछल कर पार किया

मौसम के भी है दीवार
किसी ने दिशा अपना मोड़ लिया
घोंसला नया दूर कहीं बना लिया
बुलंद मगर, ये सीमा खूब पार किया

मौसम के भी है दीवार
पाँव उठी, पर रुख गई
बाहें फैली, पर खाली पाई
दुनिया-ए-उल्फत, हसरत ये कैसी पाई