आज की रात, न गुज़ारना, सिसकियों के नाम
मीलों दूर चलने की, लगी है इन में प्यास
सालों तले जलने की, लगी है इन में आस

आज की रात, न गुज़ारना, सिसकियों के नाम
तबाह हो जाये, चाहे, चाहतों की ये शाम
रुसवा हो जाए, चाहे, इश्क़ का मकाम

आज की रात, न गुज़ारना, सिसकियों के नाम
भीग गया गर दामन, काहिश-ए-सफर
लूट गया गर चमन, इंतज़ार-ए-बहार

आज की रात, न गुज़ारना, सिसकियों के नाम
हो चाहे अपनों का दिया हुआ, या जमाने का
भेंट, जो छुपाना भी मुश्किल, और सजाना भी

आज की रात, न गुज़ारना, सिसकियों के नाम
आदत बन जायेंगे ये अश्क़, तैरते तैरते
सूख जाएंगे ये आंख, यूँही पीते पीते

आज की रात, न गुज़ारना, सिसकियों में मशगूल
कहते सुना
वक्त के सीने में है हर ज़ख्म का मरहम
जो गम
उम्र भर रुलाये, हो क्या दिलासा, हो कहाँ किनारा