कैलेंडर भी क्या कमाल करती है
सूरज के टुकड़े करती है, फिर चौकों में बाँट के, खूब तमाशा देखती है
Analysis, Kavitha, Shayri, Triveni
Analysis, Kavitha, Shayri, Triveni
कैलेंडर भी क्या कमाल करती है
सूरज के टुकड़े करती है, फिर चौकों में बाँट के, खूब तमाशा देखती है